“गुरु: ब्रह्मा गुरु: विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा: I
गुरु: साक्षात् परंब्रह्मा,तस्मै श्री गुरुवे नमम: II”
“प्रारभ्मिक शिक्षा मिलती है,माता पिता के चरणों से I
लेकिन असली शिक्षा मिलती है,गुरु के अनुकरणों से II”
“माता पिता के चरणों में अपना यह जीवन बीता है I
किन्तु गुरु के अनुकरणों से हमने जग भी जीता है II”
“एक चन्दन का पौधा पूरे वन को महका देता है I
एक गुरु कितने शिष्यों का जीवन चमका देता है II”
ध्यानंमूलं गुरोमूर्ति: पूजा मूलं गुरो: पदम् I
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा II
शिक्षक एक मोमबत्ती के समान के समान होता है I
जो स्वयं जलकर दूसरो को रोशनी देता है II
कबीर ते नर अँध है,गुरु को कहतै और I
हरि रूठै गुरु ठौर है,गुरु रूठै नही ठौर II
“सात समुद्र की मसि करूँ,लेखनी सब वन राइ I
सब धरती कागद करूँ,गुरु गुण लिख्या न जाय II
“ मैं इस जग में उन गुरुओं का ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ I
चन्दन रुपी उन गुरुओं का शत्शत् वंदन करता हूँ II”